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This is a religious blog for the upliftment of human being. The main objective is to attain inner peace in this stressful and depressed world. One must spend some valuable time with God to gain a happier and wonderful life.
Monday, 11 September 2017
800. God The Supreme Power || दोहा || श्री गुरु चरन सरोज राज, निज मनु मुकुरु सुधारि | बरनऊँरघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि || बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरों पवन-कुमार || बल बुद्धि विद्या देऊ मोहि, हरहु क्लेश विकार || || चौपाई || जय हनुमान ज्ञान गुन सागर | जय कपीस तिहुं लोक उजागर || रामदूत अतुलित बल धामा | अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा || महावीर बिक्रम बजरंगी | कुमति निवार सुमति के संगी || कंचन बरन बिराज सुबेसा | कानन कुण्डल कुंचित केसा || हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै | काँधे मूँज जनेऊ साजै || शंकर सुवन केसरी नन्दन | तेज प्रताप महा जग वन्दन || विद्यावान गुनी अति चातुर | राम काज करिबे को आतुर | प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया | राम लखन सीता मन बसिया || सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा | विकट रूप धरि लंक जरावा || भीम रूप धरि असुर संहारे | रामचन्द्र के काज संवारे || लाय संजीवन लखन जियाये | श्री रघुबीर हरषि उर लाये || रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई | तुम मम प्रिय भरत सम भई || सहस बदन तुम्हरो जस गावै | अस कहि श्रीपति कंठ लगावै || सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा | नारद सारद सहित अहीसा || जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते | कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते || तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा | राम मिलाय राजपद दीन्हा || तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना | लंकेश्वर भये सब जग जाना || जुग सहस्त्र योजन पर भानू | लील्यो ताहिं मधुर फल जानू || प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं | जलधि लांघि गए अचरज नाहीं || दुर्गम काज जगत के जेते | सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते || राम दुआरे तुम रखवारे | होत न आज्ञा बिनु पैसारे || सब सुख लहै तुम्हारी सरना | तुम रक्षक काहू को डरना || आपन तेज सम्हारो आपै | तीनों लोक हाँक ते काँपै || भूत पिशाच निकट नहिं आवै | महाबीर जब नाम सुनावै || नासै रोग हरै सब पीरा | जपत निरंतर हनुमत बीरा || संकट तें हनुमान छुडावै | मन क्रम बचन ध्यान जो लावै || सब पर राम तपस्वी राजा | तिन के काज सकल तुम साजा || और मनोरथ जो कोई लावै | सोई अमित जीवन फल पावै || चारों जुग परताप तुम्हारा | है परसिद्ध जगत उजियारा || साधु सन्त के तुम रखवारे | असुर निकंदन राम दुलारे || अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता | अस बर दीन जानकी माता || राम रसायन तुम्हरे पासा | सदा रहो रघुपति के दासा || तुम्हरे भजन राम को पावै | जनम जनम के दुःख बिसरावै || अन्त काल रघुबर पुर जाई | जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई || और देवता चित न धरई | हनुमत सेइ सर्व सुख करई || संकट कटै मिटै सब पीरा | जो सुमिरै हनुमत बलबीरा || जय जय जय हनुमान गोसाईं | कृपा करहु गुरुदेक की नाईं || जो सत बार पाठ कर कोई | छूटहि बंदि महासुख होई || जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा | होय सिद्धि साखी गौरीसा || तुलसी दास सदा हरि चेरा | कीजै नाथ ह्रदय मँह डेरा || || दोहा || पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप | राम लखन सीता सहित, ह्रदय बसहु सुर भूप | ||इति श्री हनुमान चालीसा समाप्त|
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